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Osho Philosophy Hindi [सहज रहने का क्या अर्थ है ? ]

सहज रहने का क्या अर्थ है ?


*गरब न करिबा, सहजै रहिबा...*‌
 
सहज रहना। क्या अर्थ है सहज रहने का? हिसाब-किताब से मत रहना, निर्दोष भाव से रहना। वृक्ष सहज हैं, पशु-पक्षी सहज हैं, सिर्फ आदमी असहज है। असहजता कहां से आ रही है? जो नहीं हूं, वैसा लोगों को दिखला दूं; जो नहीं हूं वैसा सिद्ध कर दूं--इससे असहजता पैदा होती है। हूं गरीब, लेकिन लोगों पर धाक जमा दूं अमीर होने की। हूं अज्ञानी, लेकिन लोगों को खबर रहे कि ज्ञानी हूं।

सहज तुम तभी हो सकोगे जब तुम यह अहंकार की यात्रा छोड़ दो। तुम कहो, जैसा हूं हूं--बुरा तो बुरा, भला तो भला। जैसा हूं ऐसा परमात्मा का बनाया हुआ हूं। इसमें अकारण पर्दे न डालूंगा, छिपाऊंगा नहीं। अभी तुम्हारी हालत ऐसी है जैसे घाव है, और उस पर तुमने गुलाब का फूल रखकर छिपा दिया है। तो तुम असहज हो गये हो। घाव तो भीतर है, गुलाब का फूल ऊपर रखा है। भीतर मवाद पक रही है। और गुलाब के फूल के कारण घाव भर भी नहीं सकता, क्योंकि सूरज की रोशनी न मिलेगी, ताजी हवा न मिलेगी।      
भीतर तुम जो हो, वैसा ही अपने को उघाड़ दो। तब तुम सहज हो जाओगे। भय छोड़ो। भय क्या है? लोग बुरा ही कहेंगे न, तो हर्ज क्या है? लोग ध्यान नहीं देंगे, सम्मान नहीं करेंगे, तो खो क्या जायेगा? उनके सम्मान से मिलता ही क्या है?
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ओशो✍

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