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Short motivational story || लालच और भय ||

 Short motivational story in hindi for success लालच और भय


  राजा भोज के दरबार में बड़े-बड़े पंडित थे, बहुत ज्ञानी थे और कभी-कभी उनकी परीक्षा भी लेते थे।  एक दिन वह अपने तोते को महल से दरबार में ले आया।  तोता एक ही बात को बार-बार दोहराते हुए एक ही रटना करता था: 'एक ही गलती है, एक ही गलती है, एक ही गलती है।'


  राजा ने अपने दरबारियों से पूछा, "यह तोता किस गलती की बात कर रहा है?"


   पंडित बड़े संकट में थे।  और राजा ने कहा, "यदि आप सही उत्तर नहीं देते हैं, तो आपको फांसी दी जाएगी, यदि आप सही उत्तर देते हैं, तो लाखों पुरस्कार और सम्मान।"


  अब अटकलबाजी नहीं चल सकती थी, यह एक खतरनाक मामला था।  सही उत्तर क्या है?  तोते से पूछा भी नहीं जा सकता।  तोता और कुछ नहीं जानता।  तोता इतना ही कहता है, तुम लाख पूछो, वही कहता है: 'एक ही गलती है।'


  पंडित सोच में पड़ गए।  उसने समय मांगा, खोज में निकला।  जो दरबार में राजा का सबसे बड़ा पंडित था, वह भी किसी बुद्धिमान व्यक्ति को खोजने के लिए इधर-उधर घूमने लगा।  अब बिना ज्ञानी के पूछे काम नहीं चलेगा।  अब शास्त्रों में देखने का कोई मतलब नहीं है।  अब अनुमान लगाने से काम नहीं चलेगा।  जहां जीवन खतरे में है, अनुमान काम नहीं करता है।  तर्क आदि भी काम नहीं करते।  तोते से कुछ रहस्य नहीं निकाले जा सकते।  वह बहुतों के पास गया लेकिन कोई उत्तर नहीं दे सका कि तोते के प्रश्न का उत्तर क्या होगा।


  बहुत उदास होकर महल की ओर लौट रहा था कि एक चरवाहा मिला।  उन्होंने पूछा, "पंडित जी, क्या आप बहुत दुखी हैं? जैसे कोई पहाड़ टूट गया हो, कि मौत आने वाली है, बहुत दुख की बात है! क्या बात है?"


   तो पंडित ने अपनी समस्या बताई, जिसे दुविधा कहा।  चरवाहा ने कहा, "चिंता मत करो, मैं इसे हल कर दूंगा। मुझे पता है। लेकिन केवल एक ही समस्या है। मैं चल सकता हूं लेकिन मैं बहुत कमजोर हूं और मैं इस कुत्ते को अपने कंधे पर नहीं ले जा सकता।"  इसे पीछे नहीं छोड़ सकते।  मैं इससे बहुत जुड़ा हुआ हूं।"


  * पंडित ने कहा, "चिंता मत करो। मैं इसे अपने कंधे पर रखता हूं।


  ब्राह्मण महाराज ने कुत्ते को अपने कंधे पर बिठा लिया।  दोनों महल पहुंचे।  तोते ने एक ही रट रखा था कि एक ही गलती है, एक ही गलती है।  चरवाहा हँसा।  उन्होंने कहा, ''सर, यह जो गलती है, देखिये.''  पंडित कुत्ते को कंधे पर लेकर खड़ा था।


  राजा ने कहा, "मैं नहीं समझा।"


  उन्होंने कहा कि "शास्त्रों में लिखा है कि पंडित कुत्ते को नहीं छूता है और अगर वह छूता है, तो स्नान करें और आपका महान पुजारी कुत्ते के साथ अपने कंधे पर खड़ा है। जिसे लालच नहीं मिलता वह छोटा है।  केवल एक गलती: लालच और भय।"  लालच का दूसरा पक्ष भय है, नकारात्मक पक्ष।  ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।  एक तरफ डर, दूसरी तरफ लालच।"


  ये दोनों बहुत अलग नहीं हैं।  जो भय से धार्मिक है, वह दंड से डरता है, नरक से, वह धार्मिक नहीं है।  और जो लोभ के कारण धार्मिक है, जो स्वर्ग से वासना है, वह भी धार्मिक नहीं है।


  फिर कौन धार्मिक है?


  धार्मिक वह है जिसमें न लोभ हो और न भय।  जिसे न कुछ लुभाता है और न कुछ डराता है।  केवल वही जो भय और प्रलोभन से ऊपर उठ चुका है, सत्य को देख सकता है।


  सत्य को देखने के लिए लालच और भय से मुक्ति चाहिए।  सत्य की पहली शर्त है निर्भयता, क्योंकि जब तक भय आपको सता रहा है, आपका मन कभी नहीं रुकेगा।  भय कांपता है, भय कांपता है।  तुम्हारे भीतर का प्रकाश कंपन करता रहता है।  तुम्हारे भीतर लोभ से, भय की हजार लहरें उठती हैं..!!

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  जय श्री कृष्ण जय जगन्नाथ

https://youtu.be/8G1t1K0CVM0

https://wealthhiwealth.com/ओशो-कथाएं-6-भय-और-प्रेम/

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