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Osho philosophy-5

 बातो को समझने के लिए सही समझ चाहिए 

Osho



एक बौद्ध भिक्षु भोजन बनाने के लिए जंगल से लकड़ी उठा रहा था कि उसने कुछ अजीब देखा।  उसने एक बिना पैर की लोमड़ी देखी, जो ऊपर से स्वस्थ दिख रही थी।  उसने सोचा कि यह लोमड़ी इस हालत में जिंदा कैसे है?

  वह अपने ख्यालों में इस कदर खोया हुआ था कि अचानक हड़कंप मच गया।  जंगल का शेर राजा उस तरफ आ रहा था।  साधु भी तेजी से एक पेड़ पर चढ़ गया और वहां से देखने लगा।
 
  शेर ने एक हिरण का शिकार किया था और उसे अपने जबड़े में पकड़े हुए लोमड़ी की ओर बढ़ रहा था।  उसने लोमड़ी पर हमला नहीं किया, बल्कि उसे खाने के लिए मांस के टुकड़े भी दिए।  साधु को यह देखकर और भी आश्चर्य हुआ कि शेर लोमड़ी को मारने के बजाय उसे खाना दे रहा था।

  भिखारी बुदबुदाया।  उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।  इसलिए वह अगले दिन फिर गया और गुप्त रूप से शेर की प्रतीक्षा करने लगा।  आज भी यही हुआ।  भिखारी ने कहा कि यह ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण है।  वह जिसे पैदा करता है उसकी रोटी का प्रबंध भी करता है।  आज से मैं भी इस लोमड़ी की तरह ऊपरवाले की दया पर जीवित रहूंगा।  वह मेरे खाने की व्यवस्था करेगा।

  यह सोचकर वह एक सुनसान जगह पर जाकर बैठ गया।  पहला दिन बीता, कोई नहीं आया।  अगले दिन कुछ लोग आए, लेकिन किसी ने भिखारी की ओर नहीं देखा।  धीरे-धीरे उसकी ताकत खत्म होती जा रही थी।  वह अभी भी चल नहीं सकता था।  तभी एक महात्मा वहां से गुजरे और साधु के पास पहुंचे।  साधु ने महात्मा को अपनी पूरी कहानी सुनाई और कहा, 'आप ही मुझे बताएं कि भगवान मेरे लिए इतने क्रूर कैसे हो गए?  क्या ऐसी स्थिति में किसी तक पहुंचना पाप नहीं है?'

  'बिल्कुल,' महात्मा ने कहा, लेकिन तुम इतने मूर्ख कैसे हो सकते हो?  तुम क्यों नहीं समझते कि भगवान तुम्हें उस शेर की तरह बनते देखना चाहते थे, लोमड़ी की तरह नहीं।

  जीवन में ऐसा ही होता है कि हम विपरीत चीजों को उस तरह से समझते हैं जैसे उन्हें समझना चाहिए।  हम सभी के अंदर कोई न कोई शक्ति होती है, जो हमें महान बना सकती है।  इन्हें पहचानना जरूरी है, इस बात का ध्यान रखना कि हम शेर की जगह लोमड़ी नहीं बन रहे हैं।
  संकलन-रामजी

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