google.com, pub-8281854657657481, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Osho Philosophy Hindi: Osho प्रश्न उतर

Thursday

Osho प्रश्न उतर

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*आखिरी दो छोटे प्रश्न।*

*क्या बुद्धत्व को उपलब्ध होना भी नियत है? अगर ऐसा है, तो फिर कुछ करने या न करने से क्या फर्क पड़ता है?*

*ओशो...*🎤💖🔔

 कोई भी फर्क नहीं पड़ता; लेकिन करना जारी रखना। करना अभिनय की तरह। बुद्धत्व तुम्हारे द्वार अपने आप आ जाएगा। बुद्धत्व का किसी करने, न करने से कोई संबंध भी नहीं है। बुद्धत्व का संबंध साक्षी-भाव से है। जाग गया जो, उसे हम बुद्ध कहते हैं।
अहंकार सुलाए हुए है। वह तुम्हारी नींद है। बस, अहंकार टूट जाए, करने का भाव गिर जाए। करना जारी रखना। क्योंकि तुम्हारी जल्दी है करना ही छोड़ने की, करने का भाव गिराने की जल्दी नहीं है।
तुम चाहते हो, जब कुछ फर्क ही नहीं पड़ता; बुद्धत्व नियत ही है; तो बस आंख बंद करो, चादर ओढो, सो जाओ। तो बुद्ध कोई पागल नहीं थे, नहीं तो वे भी चादर ओढ़कर सो गए होते!
बुद्धत्व नियत है, वह होगा ही, वह घटेगा ही। देर कितनी ही कर सकते हो। कितने ही भटको, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि बुद्धत्व तुम्हारा स्वभाव है। लेकिन अगर चादर ओढ़कर सोए रहे, तो बहुत लंबा हो जाएगा भटकाव। बुद्धत्व तो मिलेगा आखिर में। जब भी चादर से उठोगे, आंख खोलोगे; पाओगे, तुम बुद्धत्व को उपलब्ध हो।
आंख खोलने की कला है, साक्षी हो जाना, कर्ता न होना। इसलिए कर्म छोड़ने की जल्दी मत करना, कर्ता-भाव को गिराने की फिक्र करो।

 *और दूसरा प्रश्न है, साक्षी-भाव से अभिनय की कला तो आती दिखती है, पर आनंद-भाव क्यों कर नहीं जुड़ पाता?*

 तब तुम अभिनय का भी अभिनय ही कर रहे हो। वह असली नहीं है। अभिनय असली होना चाहिए। अगर तुमने अभिनय का भी अभिनय किया, कि भीतर तो तुम जानते हो कि कर्ता हो, मगर अब क्या करें, यह कृष्ण पीछे पड़े हैं; चलो, अभिनय करो! तो आनंद का भाव उदय नहीं होगा। आनंद का भाव तो कसौटी है कि तुमने अगर अभिनय अभिनय की तरह किया, तो आनंद भाव घटता ही है, उसमें कभी कोई अंतर नहीं पड़ता। वह होता ही नहीं उससे विपरीत।...क्रमशः

*गीता दर्शन-(भाग--8) प्रवचन-212*
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🔴जो नहीं है, वह नहीं है। जो है, वह है। जो नहीं है, उसको लाने का कोई उपाय नहीं है।
अगर पत्नी पर संदेह आ गया है तुम्हें, तो क्या करोगे? अगर प्रेम नहीं है, तो कैसे लाओगे? प्रेम कोई वस्तु तो नहीं है कि तुम बाजार से खरीद लाओ! कोई जबरदस्ती तो प्रेम पैदा नहीं किया जाता। और जहां-जहां जबरदस्ती की जाती है, वहां-वहां प्रेम के पैदा होने की सब संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं।
और जब तुम जबरदस्ती में किसी को प्रेम करते हो, तो वहां प्रेम कैसे होगा? सिर्फ अभिनय हो सकता है। इसलिए सौ में निन्यानबे पति-पत्नी अभिनय कर रहे हैं। वे एक दूसरे को जतला रहे हैं कि प्रेम है। लेकिन प्रेम नहीं है। प्रेम हो भी नहीं सकता; क्योंकि जबरदस्ती की जा रही है।
प्रेम स्वेच्छा से दिया गया दान है; जबरदस्ती मांगा कि खो जाता है। तुम उसकी भिक्षा नहीं ले सकते। तुम उसे लूट नहीं सकते। तुम उसका शोषण नहीं कर सकते। वह स्वेच्छा से दिया गया दान है। वह दूसरा देना चाहे, तो मिलता है। वह न देना चाहे, तो तुम ले नहीं सकते।
ओशो♣️

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