google.com, pub-8281854657657481, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Osho Philosophy Hindi: मृत्यु

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मृत्यु

🔴मृत्यु केवल मनुष्य के लिए है। इसे थोड़ा समझ लें। पशु भी मरते है, पौधे भी मरते है, लेकिन मृत्यु मानवीय घटना है। पौधे मरते हैं, लेकिन उन्हें अपनी मृत्यु का कोई बोध नहीं है। पशु भी मरते हैं, लेकिन अपनी मृत्यु के संबंध में चिंतन करने में असमर्थ है।

तो मृत्यु केवल मनुष्य की ही होती है, क्योंकि मनुष्य जानकर मरता है जानते हुए मरता है। मृत्यु निश्‍चित है, ऐसा बोध मनुष्य को है। चाहे मनुष्य कितना ही भुलाने की कोशिश करे, चाहे कितना ही अपने को छिपाये, पलायन करे, चाहे कितने ही आयोजन करे सुरक्षा के, भुलावे के; लेकिन हृदय की गहराई में मनुष्य जानता है कि मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है।

मृत्यु के संबंध में पहली बात तो यह खयाल में ले लेनी चाहिए कि मनुष्य अकेला प्राणी है जो मरता है। मरते तो पौधे और पशु भी है, लेकिन उनके मरने का भी बोध मनुष्य को होता है, उन्हें नहीं होता। उनके लिए मृत्यु एक अचेतन घटना है। और इसलिए पौधे और पशु धर्म को जन्म देने में असमर्थ हैं।

जैसे ही मृत्यु चेतन बनती है, वैसे ही धर्म का जन्म होता है। जैसे ही यह प्रतीति साफ हो जाती है कि मृत्यु निश्‍चित है, वैसे ही जीवन का सारा अर्थ बदल जाता है; क्योंकि अगर मृत्यु निश्‍चित है तो फिर जीवन की जिन क्षुद्रताओं में हम जीते हैं उनका सारा अर्थ खो जाता है।

मृत्यु के संबंध में दूसरी बात ध्यान में ले लेनी जरूरी है कि वह निश्‍चित है। निश्‍चित का मतलब यह नहीं कि आपकी तारीख, बड़ी निश्‍चित है। निश्‍चित का मतलब यह कि मृत्यु की घटना निश्‍चित है। होगी ही। लेकिन यह भी अगर बिलकुल साफ हो जाये कि मृत्यु निश्‍चित है, होगी ही। तो भी आदमी निश्‍चित हो सकता है। जो भी निश्‍चित हो जाता है, उसके बाबत हम निश्‍चित हो जाते हैं, चिंता मिट जाती है।

मृत्यु के संबंध में तीसरी बात महत्वपूर्ण है, और वह यह है कि मृत्यु निश्‍चित है, लेकिन एक अर्थ में अनिश्‍चित भी है। होगी तो, लेकिन कब होगी, इसका कोई भी पता नहीं। होना निश्‍चित है, लेकिन कब होगी, इसका कोई भी पता नहीं है। निश्‍चित है और अनिश्‍चित भी। होगी भी, लेकिन तय नहीं है, कब होगी। इससे चिंता पैदा होती है। जो बात होनेवाली है, और फिर भी पता न चलता हो, कब होगी; अगले क्षण हो सकती है, और वर्षों भी टल सकती है। विज्ञान की चेष्टा जारी रही तो शायद सदियां भी टल सकती है। इससे चिंता पैदा होती है।
कीर्कगार्ड ने कहा है, मनुष्य की चिंता तभी पैदा होती है जब एक अर्थ में कोई बात निश्‍चित भी होती है और दूसरे अर्थ में निश्‍चित नहीं भी होती है। तब उन दोनों के बीच में मनुष्य ओचता में पड़ जाते हैं।♣️

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