google.com, pub-8281854657657481, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Osho Philosophy Hindi: Osho philosophy-6

Saturday

Osho philosophy-6

 जो तुम्हारे मन में चलता है,



तुम दस मिनट अपने घर के कोने में 

बैठकर मन में जो भी चलता हो, 


उसे एक कागज पर लिख लेना। 

तो तुम जो भी पाओगे, 

तुम अपने मित्र को—निकटतम मित्र को 

भी बताने को राजी न होओगे। 


क्योंकि वह बिलकुल पागलपन मालूम पड़ेगा। 

जो तुम्हारे मन में चलता है, 

उसे लिखना कागज पर और 

बेईमानी मत करन—जो चलता हो, वही लिखना। 

तुम बड़े हैरान होओगे: 

मन कैसी छलांगें लगा रहा है।


रास्ते से गुजरते हो, कुत्ता दिखाई पड़ता है। 

कुत्ता दिखाई पड़ा कि यात्रा शुरू हो गई। 

मित्र का कुत्ता याद आ गया। 


मित्र के कुत्ते की वजह से मित्र याद आ गया। 

मित्र की वजह से मित्र की पत्नी याद आ गई। 

और चल पड़े तुम! 


अब इस कुत्ते से उसको कोई लेना—देना नहीं। 

पर भीतर की यात्रा शुरू हो गई; 

अंतरंग वार्तालाप, इंटरनल डायलाग चल पड़ा।


अगर तुम किसी से कहोगे कि कुत्ते को 

देखकर यह सब हुआ…। यह भी हो सकता है 

कि मित्र की पत्नी के प्रेम में पड़ गए, 

शादी हो गई, बाल—बच्चे हो गए। 

उनका तुम विवाह कर रहे हो!


तुमने शेखचिल्लियों की कहानियां पढ़ी हैं? 

वह तुम्हारी ही कहानियां हैं। मन शेखचिल्ली है। 

यह मत समझना कि वे बच्चों को बहलाने के 

लिए लिखी गई कहानियां है, 


यह तुम चौबीस घंटे कर रहे हो। 

यही तंद्रा है, यही नींद है। 


जिसको कबीर कहते हैं: 

संतों जागत नींद न कीजै।


जागे तुम ऊपर—ऊपर से लग रहे हो, 

भीतर बड़े सपने चल रहे हैं। 

पर्त—दर—पर्त सपनों ही तुम्हें घेरे हुए हैं। 

पर्त—दर—पर्त बादलों की आकाश को घेरे हुए है। 

और यह पर्त—दर—पर्त जो पागलपन है, 

इसे तुम दूसरे पर उलीचते रहते हो; 

इसे तुम दूसरों पर फेंकते रहते हो। 

वही तुम्हारा वार्तालाप है।


मन मस्त हुआ तब क्यों बोले …

लेकिन जब तुम मस्त हो जाओगे, 

नील गगन हो जाओगे, 

खुलेगी गगन की गुफा और बरसेगी 

अजर धार—तब तुम क्यों बोलोगे! 

तब तुम चुप हो जाओगे...........


❣ ओशो  ❣

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